अपराधिक मामलों की सुनवाई किस प्रकार शुरू होती है



 न्यायालय में अपराधिक मामलों की सुनवाई किस प्रकार शुरू होती है? 






Criminal offences justice
Criminal justice 



 जैसे कि पहले भी उल्लेख किया जा चुका है,  मजिस्ट्रेट शिकायत या पुलिस रिपोर्ट या पुलिस अधिकारी से अलग किसी अन्य व्यक्ति से प्राप्त सूचना अथवा अपराध होने की बाबत अपने ज्ञान के आधार पर अभियुक्त के विरुद्ध कार्यवाही शुरू कर सकता है | इसको ठीक प्रकार समझने के लिए सर्वप्रथम शिकायत और पुलिस रिपोर्ट के बारे में संक्षेप में जानना आवश्यक है|









        शिकायत क्या होती है? 




 मजिस्ट्रेट के सामने दंड की कार्यवाही करने के आशय से अभियुक्त के खिलाफ लगाया गया आरोप शिकायत कहलाती है| शिकायत मौखिक या लिखित रूप से की जा सकती है ,पुलिस को दी गई सूचना या जानकारी शिकायत नहीं कहलाती है|


    पुलिस रिपोर्ट क्या है? 



संज्ञेय यानी संगीन अपराध की पूरी जांच पड़ताल करने के बाद पुलिस की रिपोर्ट मजिस्ट्रेट को सौंपती है, वह पुलिस रिपोर्ट कहलाती है | पर ध्यान देने की बात है कि किसी साधारण अपराध की पुलिस रिपोर्ट मिलने के बाद मजिस्ट्रेट उस शिकायत मानकर ही उस पर कार्यवाही शुरू करता है |इस तरह संबंधित पुलिस अधिकारी की भूमिका यहां शिकायतकर्ता की हो जाती है| संगीन अपराध पर अपनी जांच समाप्त करने के उपरांत जब पुलिस सूचना के साथ न्यायालय में रिपोर्ट पेश करती है, कि जांच पूरी हो चुकी है ,तथा कोई अपराध हुआ नहीं पाया गया है तो इसे अंतिम रिपोर्ट कहा जाता है |


   पुलिस को अपराध की सूचना कैसे दें? 



(1)  संगीन (संज्ञेय) अपराध होने पर पुलिस को किस प्रकार सूचित करें



यदि आप स्वयं पीड़ित है या आपको किसी अपराध किए जाने या होने की जानकारी है तो आप मौखिक या लिखित किसी भी रूप में इसकी सूचना पुलिस को दे सकते हैं, यदि आप पुलिस को मौखिक तौर पर सूचित करते हैं, तो पुलिस और आपकी सूचना को लिखित रूप में दर्ज कर लिया जाता है |तथा शिकायतकर्ता होने के नाते आपको उस पर हस्ताक्षर करने होते हैं|









आपके द्वारा दी गई जानकारी को पुलिस अपने रजिस्टर में दर्ज कर लेती है, दर्ज की गई है सूचना ही प्रथम सूचना रिपोर्ट यानी (f.i.r.) कहलाती है  |उस समय उपरांत आपको इसकी कॉपी निशुल्क उपलब्ध करवा दी जाती है|


दिल्ली तथा देश के कुछ अन्य राज्यों में 100 नंबर पर टेलीफोन करके पुलिस कंट्रोल रूम (पीसीआर )को अपराध के बारे में सूचित करने की सुविधा प्रदान की गई है |• जैसे ही पीसीआर के कर्मचारियों को कोई टेलीफोन कॉल आती है तो पीसीआर प्रणाली में वह सूचना दर्ज हो जाती है |और इसके बाद वह सूचना तुरंत संबंधित थाने के पुलिस अधिकारियों कर्मचारियों को भेज दी जाती है |संबंधित थाने में तैनात पुलिस अधिकारी उस सूचना को अपने रोज नामाचे में दर्ज करके उस पर आगे की कार्यवाही शुरू कर देता है|









रिपोर्ट कहां दर्ज करवाएं? 



आप अपराध होने की सूचना पुलिस चौकियां थाना में दे सकते हैं, उदाहरणतया दिल्ली के अंदर 11 पुलिस जिले बनाए गए हैं


1. नई दिल्ली पुलिस जिला


2. दक्षिण पुलिस जिला


3. दक्षिण-


 पूर्वी पुलिस जिला


4. पूर्वी पुलिस जिला


5. उत्तरी -पूर्वी पुलिस जिला


6. बाहरी आउटर पुलिस जिला


7. उत्तर- पश्चिमी पुलिस जिला


8. दक्षिणी -पश्चिमी पुलिस जिला 


9. केंद्रीय पुलिस जिला


10. उत्तरी पुलिस जिला


11. पश्चिमी पुलिस जिला


आमतौर पर प्रत्येक थाने में प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफ .आई आर) दर्ज कराने के लिए कुछ पुलिसकर्मियों को विशेष तौर पर नियुक्त किया जाता है | इन पुलिसकर्मियों को ड्यूटी ऑफिसर कहा जाता है| जब भी आप किसी अपराध की जानकारी या रिपोर्ट दर्ज करवाने के उद्देश्य से पुलिस स्टेशन जाए तो उसके लिखित शिकायत अवश्य साथ लेकर जाएं | थाने पहुंचकर उस लिखित शिकायत को थाना अधिकारी( एस .एच .ओ.) या अतिरिक्त थाना अधिकारी के सामने पेश करना चाहिए | थाना अधिकारी आपकी शिकायत पर कार्यवाही के लिए ड्यूटी ऑफिसर या किसी अन्य पुलिसकर्मी को निर्देश देगा जो आप की सूचना पर प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करेगा |यदि आपको यह बयान देना चाहते हैं तो वह भी प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कर है, आप अपनी बात पूरी सच्चाई के साथ पुलिस को बताए तथा जो भी बयान आप दे वह आपके अपने शब्दों में होना चाहिए |अपराध से जुड़ी जानकारी तुरंत पुलिस को दी जानी चाहिए | इस बात का प्रमाण होती है कि अभियुक्त के पहचान को लेकर आप किसी उलझन में नहीं थे रिपोर्ट दर्ज करवाने में आकारण देरी आपके मामले पर विपरीत प्रभाव डाल सकता है | वास्तव में रिपोर्ट दर्ज कराने में देरी से तथ्यों के साथ छेड़छाड़ गवाहों के साथ जोड़ -तोड़ कर के मामलों को नया रूप देने के लिए गलत व अनैतिक तरीकों का प्रयोग करने इत्यादि की संभावनाएं बढ़ जाती है |












क्या करें जब पुलिस पार्थ पिक सूचना रिपोर्ट लिखने से मना करें? 



जब कभी पुलिस अधिकारी प्राथमिक सूचना रिपोर्ट लिखने पर आनाकानी करे तो अपने लिखित उपाय कर सकते है:-



1.) वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों से इसकी शिकायत करें



ऐसी परिस्थितियों में आप अपनी सूचना और मामले को संक्षिप्त विवरण लिखकर उसे डाक द्वारा पुलिस आयुक्त ,उपायुक्त, उप पुलिस अधीक्षक, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को भेज दें आपके द्वारा डाक से भेजी गई सूचना मिलने पर यदि पूरी वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को लगता है कि वह सूचना या जानकारी संगीन अपराध होने का प्रमाण देती है तो उसकी जांच के आदेश देता है| और फिर जांच शुरू हो जाती है वरिष्ठ पुलिस अधिकारी स्वयं भी उस मामले की जांच कर सकता है, अथवा किसी अन्य पुलिस अधिकारी को जांच का निर्देश दे सकता है |












2.) सिर्फ एडिशनल चीफ मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट को शिकायत दर्ज करवाएं



जब पुलिस आपकी रिपोर्ट दर्ज करने से मना करे तो आप चीफ मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट( मुख्य महानगर दंडाधिकारी) या संबंधित क्षेत्र/ जिले के अडिशनल चीफ मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट अतिरिक्त मुख्य महानगर दंडाधिकारी के न्यायालय में जाकर मामले की शिकायत कर सकते हैं | चीफ मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट आपकी शिकायत को कार्यवाही के लिए संबंधित मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट को भेजेगा मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट आपकी शिकायत पर मामले की जांच करेगा |इसके अलावा जांच के आदेश भी जारी कर सकता है | जब न्यायालय द्वारा पुलिस को कोई शिकायत जांच के के लिए भेजी जाती है तो पुलिस आमतौर पर प्राथमिक सूचना रिपोर्ट दर्ज करने से मना नहीं कर सकती है |











        रेड रिपोर्ट क्या होती है?



इसे कैंसिलेशन रिपोर्ट भी कहते हैं कुछ मामलों में जांच के बाद पुलिस इस आधार पर कोई अपराध हुआ प्रतीत नहीं हो रहा है मामले को समाप्त करने के लिए न्यायालय में कैंसिलेशन रिपोर्ट प्रस्तुत करती है| कैंसिलेशन रिपोर्ट प्रस्तुत करने के बाद न्यायालय गंभीरता पूर्वक इस बात की पुष्टि करता है कि पुलिस ने न्यायालय में कैंसिलेशन रिपोर्ट प्रस्तुत करने के बारे में शिकायतकर्ता को सूचित किया है | या नहीं ऐसी परिस्थितियों में न्यायालय शिकायतकर्ता पीड़ित को पुलिस द्वारा कैंसिलेशन रिपोर्ट प्रस्तुत करने की जानकारी देने तथा उस मामले पर उसके बाद सुनने और उसके मुताबिक जांच पड़ताल करने के लिए नोटिस जारी करता है ,पूरी जांच ना किए जाने पर न्यायालय द्वारा तफ्तीश जांच का आदेश दे सकता है |









         प्रतिवाद याचिका प्रोस्टेट (पेटिशन) 



एक शिकायतकर्ता होने के नाते यदि आप पुलिस द्वारा प्रस्तुत की गई अंतिम रिपोर्ट से संतुष्ट नहीं है, यह मानते हैं कि पुलिस ने गहराई से मामले की जांच नहीं की है ,या जांच के दौरान निष्पक्षता नहीं बढ़ती है ,या निराधार तत्वों के आधार पर अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत की है | आप संबंधित मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट के समक्ष याचिका दाखिल कर सकते हैं इसे ही प्रतिवाद याचिका या प्रोस्टेट पेटिशन कहा जाता है | इसे या नाम इसलिए दिया गया है क्योंकि इसके माध्यम से शिकायतकर्ता पुलिस द्वारा की गई जांच पड़ताल के तरीके पर विरोध जताता है|








                     मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट को या शक्ति प्राप्त है कि वह जांच के दौरान इकट्ठी की गई सामग्री व सबूतों के आधार पर अभियुक्त के खिलाफ मामले को आगे बढ़ा सकता है |स्पष्ट कहे तो न्यायालय अंतिम रिपोर्ट स्वीकार करने के लिए बाध्य नहीं होता है |उसे या  शक्ति प्राप्त होती है कि वह उसी जांच अधिकारी को या थाने के किसी अन्य वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को मामले की और अधिक अच्छी जांच करने का निर्देश भी दे सकता है |












3.) उच्च न्यायालय के समक्ष याचिका



जब कोई अधिकारी कर्मचारी अपने अनिवार्य एवं आदेश आत्मक कर्तव्यों का पालन करने में असफल होता है तो उसके विरुद्ध परमादेश रिट उच्च न्यायालय में डाल दी जाती है |जिसके द्वारा उसे अपने कर्तव्यों के पालन करने के लिए बाध्य किया जा सकता है |इसलिए जब भी पुलिस आपके पास हुई सूचना रिपोर्ट दर्ज करने से मना करे तो आप परमादेश रिट के माध्यम से उच्च न्यायालय का दरवाजा भी खटखटा सकते हैं|












 क्राइम अगेंस्ट वूमेन सेल महिला के विरुद्ध अपराध



महिलाओं के साथ निर्दयता ,अत्याचार और दहेज की मांग जैसे अपराधों की जांच के लिए क्राईम अगेंस्ट विमेन सेल का गठन किया गया है| यह एक ऐसा संगठन है जो केवल महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों की जांच करते आवेदन या शिकायत लिखकर क्राईम अगेंस्ट हुमन सेल के अधिकारी को अपने साथ हुए अत्याचार की सूचना दे सकती हैं| आपकी एक शिकायत मात्र पर सेल में जांच की कार्यवाही शुरू हो जाती है |दूसरे पक्ष के लोग भी इस कार्यवाही में शामिल किए जाते हैं |जांच पूरी होने के बाद यदि क्राईम अगेंस्ट वूमेन सेल द्वारा मामला दर्ज करने की सिफारिश की जाती है तो संबंधित थाने में अभियुक्त के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया जाता है| यदि अपराधिक मामला दर्ज करने की सिफारिश नहीं करती है, तो पीड़ित महिला ऊपर बताए तरीकों से आपराधिक शिकायत दर्ज करवा सकती है |












2.) साधारण अपराध के बारे में किस प्रकार सूचना दर्ज करवाएं? 



असंज्ञेय गए यानी साधारण अपराध के मामले में मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना कोई भी पुलिस अधिकारी ना तो जांच पड़ताल कर सकता है और ना ही किसी को गिरफ्तार कर सकता है | इस तरह के मामलों में मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट का आदेश मिलने पर ही पुलिस जांच शुरू कर दी  जाती है | ऐसे मामलों में जब भी आप शिकायत दर्ज करवाने पुलिस के पास जाएं तो आपको क्षेत्र के मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश होने के लिए कहा जाएगा| थाना अधिकारी आपके द्वारा दी गई सूचना को संक्षेप में एक रजिस्टर में दर्ज कर लेता है इसके अतिरिक्त आप अपनी शिकायत लेकर सीधे न्यायालय भी जा सकते हैं| जहां संबंधित थाने के किसी अधिकारी बात की शिकायत पर जांच करने का कार्य सौप दिया जाता है, ऐसा अपराध होने पर हमेशा पुलिस और न्यायालय को सूचित करें|


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