स्टे ऑर्डर क्या है और कैसे मिलेगा

आज के इस पोस्ट में आपको बताने वाले हैं स्टे ऑर्डर क्या होता है? स्टे ऑर्डर कैसे लिया जाता है? इसमें कितना समय लगता है? स्टे ऑर्डर मिलने पर क्या करना चाहिए? स्टे ऑर्डर नहीं मानने पर क्या होता है? स्टे आर्डर कब तक जारी रहता है?

स्टे आर्डर क्या होता है?

आमतौर पर (स्टे ऑर्डर) स्थगन आदेश का मतलब होता हैं, न्यायालय द्वारा एक आदेश को जारी करके किसी कार्य को करने से रोकने से रोकना। साधारण शब्दों में कहें तो स्टे ऑर्डर किसी कारवाही या किसी कार्य को रोकने का एक आदेश होता है। हम कह सकते हैं कि कानूनी रास्ता को रोकने के आदेश को स्टे ऑर्डर कहा जाता है।

स्टे आर्डर कैसे लिया जाता है?

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स्टे ऑर्डर न्यायाधीश द्वारा जारी किया जाता है। जब आप स्टे ऑर्डर के लिए न्यायालय में cpc की धारा 39 नियम 1 एवं 2 के तहत अर्जी दाखिल करते हैं, तो आपको साक्ष्यों एवं तर्कों से न्यायाधीश को संतुष्ट करना पड़ता है। इसलिए आपको स्टे ऑर्डर के लिए एक पारंगत वकील की जरूरत पड़ती है। वकील ऐसा व्यक्ति होता है, जो न्यायालय के सभी प्रकार की औपचारिकताओं को पूरा करने में आपकी मदद करता है।, और कम समय और कम खर्चे में न्यायालय से स्थगन आदेश जारी करने में आपकी मदद करता है। यदि वह वकील अपने क्षेत्र में पारंगत है, तो आपका काम और भी आसान बना सकता है। यदि कोई मुकदमा पहले से न्यायालय में चल रहा हो तो जज एक पार्टी के अनुरोध पर या उसके बिना भी स्टे ऑर्डर जारी कर सकता हैं। न्यायालय खुद भी एक पक्ष के अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए भी स्थगन आदेश जारी कर सकती है

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स्टे ऑर्डर में कितना समय लगता है?

कोई भी न्यायालय स्टे आर्डर कितने समय में जारी कर देगी इसके लिए कहीं पर भी कोई स्पष्ट समयसीमा तय नहीं की गई है। अमूमन यह देखा जाता है कि मामले की गंभीरता को देखते हुए तुरंत भी सेम डेट भी स्टे ऑर्डर जारी किया जा सकता है। अथवा 1 सप्ताह से 1 माह तक का समय भी लग सकता है। यह इस बात पर निर्भर करता है मामले की गंभीरता कितनी है।

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स्टे आर्डर मिलने पर क्या करना चाहिए?

यदि न्यायालय ने किसी कार्य के लिए कोई स्थगन आदेश (स्टे आर्डर) जारी कर दिया है, तो वह कार्य वहीं पर छोड़ दिया जाना चाहिए जिस स्तिथि में उस कार्य को किया जा रहा था।

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स्टे आर्डर नहीं मानने पर क्या होता है?

यदि कोई व्यक्ति या कोई संस्था न्यायालय के इस स्टे ऑर्डर का पालन नहीं करती है, तो यह कंटेंप्ट ऑफ कोर्ट समझा जाता है और उस पर मुकदमा भी दायर किया जा सकता है।, ऐसे व्यक्ति को न्यायालय के आदेश न मानने पर सजा (6 महीने तक कि जेल या जुर्माना 2000 तक)भी दी जा सकती है।

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स्टे आर्डर कब तक जारी रहता है?

किसी भी न्यायालय द्वारा जारी किया गया स्टे ऑर्डर 6 महीना तक के लिए वैध होता है। इसके बाद यह स्वत: ही समाप्त हो जाता है। यदि न्यायालय किसी विशेष कारण को दर्शाते हुए स्टे ऑर्डर की अवधि इससे अधिक रखी है तो उस अवधि तक के लिए स्टे ऑर्डर जारी रहता है जब तक के लिए न्यायालय ने जारी किया है।
28 मार्च 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में निर्देश दिया है कि देश में जितने भी दीवानी और आपराधिक मामलों में ट्रायल पर स्टे ऑर्डर लगा हुआ है, वे छह माह की अवधि के बाद खारिज हो जाएंगे। ये स्टे ऑर्डर तभी जारी रह सकेंगे जब उन्हें किसी तार्किक आदेश के जरिये बढ़ाया गया हो।
शीर्ष अदालत ने कहा मुकदमे का कार्यवाही पर स्टे ऑर्डर की मियाद छह माह से ज्यादा नहीं हो सकती। जब भी ऐसा स्टे ऑर्डर जारी किया जाएगा तो वह छह माह बाद अपने ही समाप्त हो जाएगा जब तक कि उसे स्पीकिंग (विस्तृत कारण देते हुए) आदेश के तहत बढ़ाया न गया हो।

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